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Anang Pal Malik wrote here on the consequences of scrapping a power plant in Jharkhand, because of delay in land acquisition. A reader on a social media site posted following comment on the article:
मैं एक छोटे से कस्बे का मूल निवासी हूँ जो कि बीना जंक्शन (मध्यप्रदेश) से लगभग 20 किमी दूर स्थित है । नजदीकी रेल्वे स्टेशन लगभग 8 किमी दूर स्थित है जहाँ दिन भर में 4-5 जोड़ी पैसेंजर ट्रेन और 2-3 जोड़ी नाम की एक्सप्रेस ट्रेन ठहरा करती थी । बीना से जोड़ने वाली सड़क इतनी खराब थी कि 20 किमी की दूरी तय करने में एक घंटे से भी ज्यादा समय लगता था । भोपाल, जो लगभग 120 किमी दूर है, जाने में 4 घंटे लगते थे इसलिए बहुत ही कम बसें चलती थी और ट्रेन से जाना हम सब की मजबूरी हुआ करती थी । रोजगार के अवसर न होने के कारण बच्चे युवा होते ही भोपाल की राह पकड़ लेते थे अपने बुजुर्ग मां बाप को बेसहारा छोड़कर ।
सड़कों के गड्डे भरने और ट्रेनों का स्टॉपेज करवाने के लिए बड़े पैमाने पर आन्दोलन हुआ करते थे । लाठी-गोली, धरना-प्रदर्शन नियमित घटना हुआ करती थी । एक ट्रेन का स्टॉपेज करवाकर नेतागण उसे 5 साल तक चुनावों में भुनाते थे । कुछ ट्रेनें मिली पर प्रगति कोसों दूर रही । 1947 में कस्बे की आबादी लगभग 25000 थी जो 1991 की जनगणना में 30000 हो गई । नगर पालिका, नगर पंचायत बन गई ।
1992 में श्री पी व्ही नरसिंहराव ने बीना के नजदीक (मेरे गांव से 15 किमी दूर) एक पेट्रोलियम रिफाइनरी का शिलान्यास किया । फिर क्या था गरीबों के सारे हितैषी (माफ कीजिए तथाकथित हितैषी) सक्रिय हो गए, छातीकूट होने लगा, हम अपनी जमीन नहीं देंगे के नारे गुंजायमान होने लगे । सरकार झुक गई, काम लगभग बंद हो गया ।
फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई, काम दोबारा शुरू हुआ, इस बार छातीकूटों की एक न चली और काम पूरा हो गया । काम पूरा होते होते चारों ओर विकास के संकेत दिखाई देने लगे । जहां गड्डे भरने के लिए बरसों आन्दोलन करने पड़ते थे, अब बिना मांगे चौड़ी पक्की सड़कें बन रही थी । भोपाल की दूरी 2 घंटे में तय होने लगी । सड़कों के गड्डे और ट्रेनों के स्टॉपेज के जैसे मुद्दे बेमानी हो गए ।
जहां अस्पताल में एक लेडी डॉक्टर की पोस्टिंग या X-Ray मशीन के लिए नेताओं, अफसरों के हाथ-पैर जोड़ने पड़ते थे वहां अब बिना मांगे मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल बन गया । स्कूल में एक कमरे की भीख मिलने की उम्मीद मेंं नेताजी या कलेक्टर साहब के काफिले के इंतजार मेंं घंटों धूप में तपते बच्चों को कई कमरों वाले ढेरों स्कूल मिल गए ।
कहने का मतलब यह है कि 50 सालों के धरना-प्रदर्शन ने मेरे गांव को लाठी-गोली, बेरोज़गारी और गरीबी के अलावा कुछ न दिया परन्तु 1 INDUSTRY ने बिना मांगे सारी तश्वीर बदल दी। जगह जगह ढेरो छोटे छोटे बिजनेस उगने लगे । ट्रक सुधारना, ढाबा चलाना, परचून दुकान ऐसे कई व्यावसाय सुलभ हो गए । भोपाल की ओर होने वाले पलायन में उल्लेखनीय कमी आई है । नई पीढ़ी अब नौकरी करने नहीं बल्कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने भोपाल जाती है ।
(If all educated Indians start connecting the dots the way above comment shows, India will be transformed in ten years.-Ed)