1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के कुछ विधायक तोड़ कर व अन्य छोटे दलो को मिला कर संयुक्त विधायक दल के नाम से सरकार बनाई। सरकार बनाते ही गुड को उत्तर प्रदेश से बाहर ले जाने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। गुड के दामो में बहुत तेज़ी से व बहुत ज़्यादा उछाल आया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँवो में जो सम्पन्नता आयी आज तक बनी हुई है। कृषि उत्पादो के व्यवसाय पर लगे प्रतिबंध हटाने से यही होता है।
हमारे गाँव के दो किसान परिवारों ने “पूँजी” हाथ आ जाने की वजह से entrepreneur बन जाने का निर्णय लिया। दोनो ने ट्रक ख़रीदे। एक ने नया लिया व परिवार का एक सदस्य उसका क्लीनर बन गया। दूसरे ने पुराना लिया व ड्राइवर व क्लीनर परिवार के ही सदस्य बने।
पहले का ट्रक एक साल में बिक गया, परिवार पर क़र्ज़ हो गया व बमुश्किल कर्जे से बाहर आए।
दूसरे परिवार का ट्रक दो साल में बिका। लेकिन ट्रक जो क़र्ज़ा दे गया, वो क़र्ज़ा उतारने में सारी, याने सारी, खेती की ज़मीन बिक गयी।
पूँजी क्या है? जो भी हम आय अर्जित करने में प्रयोग करते है वह पूँजी है: धन, घर, हमारा ज्ञान, हमारी skills। आय वह धन है जो हम रोज़/महीने में/ साल में कमाते है। बचत वह है जो हम आय में से ख़र्चे करने के बाद बचा लेते है। अगर हम बचा रहे है तो बचत अग़ले वर्ष के लिए हमारी पूँजी बन जाती है व पूँजी बढ़ जाने से हमारी आय बढ़ जाएगी व उससे बचत बदग जाएगी व दूसरे साल हमारी पूँजी और बढ़ जाएगी अत: आय व बचत और बढ़ जाएगी, and so on….
इसके विपरीत अगर हम आय से ज़्यादा ख़र्च कर रहे है तो इसका मतलब है कि हम अपनी पूँजी भी खा रहे है, तो अगले साल हमारी पूँजी कम रह जाएगी अत: आय कम होगी व और अगर हमने अपने ख़र्चे कम नहीं किए तो हमारी पूँजी और तेज़ी से कम होगी व हमारी आय अर्जित करने की क्षमता उतनी ही तेज़ी से कम होगी।
बस इतना सा ही है पूरा अर्थशास्त्र……
दो सौ साल पहले एक मुफ़्तखोर ठग पैदा हुआ, मार्क्स नाम था उसका। बोला जिनके पास पूँजी है वे ही धनी है और पूँजी होने की वजह से ही वे धनी है व अन्य लोग उनके पास काम करने को विवश है व इसलिए शोषित है। उनसे पूँजी छीनकर अगर सरकार अपने क़ब्ज़े में ले ले तो सब लोग सरकार के पास काम करेंगे व किसी का शोषण नहीं होगा।
और विनाश आरम्भ हो गया। सारे मुफ़्तख़ोर मार्क्स के साथ हो लिए। आज तक विनाश चल रहा है।
जबकि:
१. धनी होने के लिए पूँजी की नहीं, व्यवसाय करने की स्वतंत्रता चाहिए होती है। गुड के व्यवसाय पर से जैसे ही सरकारी नियंत्रण समाप्त हुआ, किसानो के दिन फिर गए।
२. Entrepreneur पूँजी से नहीं बनते। ट्रक उस समय भी चलते थे जब हमारे गाँव के दोनो किसान परिवारों ने लिए थे, व आज भी चलते है, अधिकतर मुनाफ़ा कमाते है इसीलिए चल रहे है। वे दोनो परिवार इसलिए बर्बाद हुए क्यूँकि उनके पास धन तो था, लेकिन जो धंधा आरम्भ किया उसका कोई ज्ञान नहीं था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँवो के बहुत से किसान परिवार आज भी अन्य व्यवसाय कर रहे है व बहुत अच्छा कमा रहे है।
कौन entrepreneur है व कौन नहीं किसी को नहीं पता। UPSC कुछ भी करे, entrepreneur select नहीं कर सकता। दुनिया की कोई सरकार, कोई परीक्षा आज तक नहीं कर पायी।
Entrepreneur मिट्टी में मिला वो सोना है जो केवल और केवल मार्केट की आग में तप कर ही निखरता है। उसके लिए आवश्यक है कि मार्केट हो, व मार्केट स्वतंत्र हो। जिन देशों के शासक सत्यनिष्ठ है व ये समझ गए, वे देश सम्पन्न है, बाक़ी सब ग़रीबी व भूखमरी झेल रहे है।
इसीलिए मोदी का मुद्रा लोन भारत का भाग्य बदलने की क्षमता रखता है। बहुत सारे लोगों को छोटी छोटी मात्रा में धन दे दिया गया है: कुछ खोकर बैठ जाएँगे, कुछ सफल होकर व्यवसायी बन जाएँगे, कुछ अम्बानी अदानी बन जाएँगे। अगर मार्केट की स्वतंत्रता बरक़रार रही, व बढ़ती रही तो…….अगर निजी सम्पत्ति सुरक्षित रही व क़ानून व्यवस्था अच्छी रही तो……..
ऐसा ही मैंने कुछ कल भी लिखा था। ऐसा ही में कुछ कल भी लिखूँगा। अधिकतर मानते नहीं है। कुछ सरकारी अधिकारी है जो मानते है कि UPSC द्वारा चुने होने की वजह से वे entrepreneur है व उनके पास सारी समस्याओ का हल है इसलिए सब कुछ उनके नियंत्रण में होना चाहिए। कुछ निजी व्यवसायी है जो मानते है कि अब कोई और व्यवसायी उनको competition देने नहीं आन चाहिए। कुछ सीधे सीधे मूर्ख है जो कुछ भी पढ़ने को व सीखने को, व सोच बदलने को तैयार नहीं है।
लेकिन……… लेकिन कुछ सत्यनिष्ठ भी है जी मानते है कि भारत इतना ग़रीब है तो कुछ तो हम ग़लत कर रहे है और हमें सपमन्न देशों से सीखना चाहिए व उनके जैसे ही सिस्टम अपनाने चाहिए।
उन्ही के लिए लिखता हूँ में।
जय माँ काली।
मुफ़्तखोरो का व उनको बढ़ावा देने वाले सरकारी अधिकारियों व नेताओं का विनाश हो व entrepreneur स्वतंत्र हो जाए व परिणामत: भारत सम्पन्न हो जाए।