1973 की फ़िल्म नमक हराम में एक सीन है जिसमें राजेश खन्ना मज़दूरों को उकसा रहा होता है हड़ताल के लिए, और ए के हंगल, जो उस समय यूनियन का अध्यक्ष होता है उसे डाँटता है कि क्यूँ असम्भव माँगे उठाकर मज़दूरों को उकसा रहे हो, ऐसी माँगे जिन्हें मालिक माने तो फ़ैक्टरी ही बंद हो जाय।
राजेश खन्ना अमिताभ का दोस्त है जिसे अमिताभ ने प्लांट किया था, हंगल को हटाने के लिए, अपने अपमान का बदला लेने के लिए।
राजेश खन्ना बढ़ चढ़ कर माँगे उठाता, और अमिताभ बच्चन कुछ प्रतिरोध का ढोंग कर मान लेता। धीरे धीरे मज़दूरों में राजेश खन्ना लोकप्रिय होता गया, व अंतत ए के हंगल की यूनियन के चुनाव में राजेश खन्ना के हाथो हार हुई।
2018 के भारत को एक फ़ैक्टरी माने व फ़िल्म नमक हराम को याद करे तो सब एकदम समझ में आ जाएगा।
हारे हुए विरोधी जानते है कि अगला लोकसभा चुनाव भी हारे तो जेल पक्की है। अधिकतर केस अंतिम पड़ाव पर है। कितने स्टे मिलेंगे आख़िर। इसलिए बहुत सारे राजेश खन्ना मैदान में उतार दिए गए है। कोई अनुसूचित जाति/जनजाति का नेता, तो कोई इस पिछड़ी जाति का नेता व कोई उस पिछड़ी जाति का नेता, कोई पिछड़ी जाति बनने के प्रयास में जुटी जाति का नेता। किसी को प्रमोशन में आरक्षण चाहिए तो किसी को निजी क्षेत्र में। तो कोई पूरी आरक्षण व्यवस्था का विरोधी नेता। कोई किसान नेता तो कोई मज़दूर नेता, कोई GST का विरोधी व्यापारी नेता, कोई पे कमिशन से नाराज़ सरकारी कर्मचारियों का नेता। कोई पेट्रोल की क़ीमत से नाराज़ मध्यम वर्ग का नेता। हर कोई नाराज़। रोज़ कही ये प्रदेश बंद तो कल दूसरा प्रदेश बंद। कभी पूरा भारत बंद।
सब के तार लूटीयन माफ़िया के हाथ में, सबकी फ़ंडिंग लूटीयन माफ़िया के हाथ में। सब लूटीयन माफ़ीया के दरबारी। कोई चोरी छिपे मत्था टेक आता है तो कोई खुलेआम गले लग जाता है।
ये बात बहुत बार कही जा चुकी है कि समाजवाद में बुरे नेता अच्छे नेता को किनारे कर ऊपर पहुँच जाते है।
अधिकतर मैंगो पीपल आज के लिए जीते है: आज मुफ़्त दो, आज आरक्षण बढ़ाओ बेटा जवान होने वाला है, आज सस्ता दो, आज फ़सल के दाम बढ़ाओ, आज टैक्स कम करो, आज वेतन बढ़ाओ, कल सरकार दिवालिया हो तो हो, और सरकार दिवालिया क्यूँ होगी भला, नोट छाप लेगी, अम्बानी पर टैक्स बढ़ाओ। हमें गणित मत पढ़ाओ, चुनाव आने वाला है देख लेंगे। बुरे नेता जानते है कि एक या दो टर्म चाहिए बस दिल्ली में बच्चों के लिए फ़ार्म हाउस की व्यवस्था करने में व स्विस विला व स्विस अकाउंट की व्यवस्था करने में। उसके बाद देश दिवालिया हो तो हो, अपने आप सोना गिरवी रखते घूमेंगे जिन्हें देश चाहिए होगा। इसलिए वे हर माँग मान लेने का वादा करते है। ये भी सोचते है कि इन राजेश खन्नाओ के तार तो अपने ही हाथ में है, थोड़ी लूट इन्हें भी दे देंगे, या मसल देंगे।
भिंडरावाले से आरम्भ हुआ ये राजेश खन्ना पालने का खेल अभी तक लूटीयन माफ़िया ने बंद नहीं किया है।
और इस जाति व उस जाति, इस वर्ग या उस वर्ग के ये असम्भव माँगे उठाने वाले नीकृष्ट व घृणित लोग, लूटीयन माफ़िया के टुकड़ों के लालच में अपने ही लोगों का जीवन नष्ट करने वाले लोग, इनहि में से कभी कोई भिंडरावाले निकल आता है जो लूटीयन माफ़ीया को ही निगल लेता है।
फ़िल्म में तो राजेश खन्ना की आत्मा जग गयी थी। लेकिन लूटीयन के इन राजेश खन्नाओ की आत्मा कभी नहीं जगती।
केवल एक मुक्त बाज़ार व्यवस्था भारत से ग़रीबी समाप्त कर सकती है।और लूटीयन के पाले सारे राजेश खन्ना समाजवादी है। समाजवाद के अलावा न उन्हें कुछ समझ में आता है, न इतने सत्यनिष्ठ है कि जानने का प्रयास करे। उन्हें भी अपनी दुकान केवल समाजवाद में ही चलती नज़र आती है।
मुक्त बाज़ार व्यवस्था न हुई तो एक सौ तीस करोड़ लोगों को कोई नियंत्रण में नहीं कर पाएगा। लूटीयन माफ़िया तो भाग जाएगा। कुछेक राजेशखन्ना भी लूटीयन माफ़िया के हवाई जहाज़ के पहिए वग़ैरह पकड़ कर निकल जाएँगे। रह जाएँगे एक सौ तीस करोड़ अभागे लोग। या लालची लोग लिखना ठीक रहेगा?
एक दूसरे को नोच रहे एक सौ तीस करोड़ लोग, कि शायद किसी के शरीर से आरक्षण या सस्ता पेट्रोल या फ़सल के ऊँचे दाम निकल आए………..