“Why can’t they eat cake?”
वेनेज़ुएला के पास दुनिया का सबसे बड़ा तेल का भंडार है।
वेनेज़ुएला के पास लेकिन समाजवाद भी है।
जैसे समाजवादी भारत रेत ही रेत होते हुए भी रेत आयात करने की योजना बना रहा है, कोयले का दुनिया में सबसे बड़े भंडार में से एक होते हुए भी कोयला आयात करता है, लोहे का दुनिया के सबसे बड़े भंडार में से एक होते हुए भी लोहा आयात करता है, वैसे ही वेनेज़ुएला भी तेल होते हुए भी बर्बाद हो गया है।
कल लोग वेनेज़ुएला की राजधानी में एक बेकरी से ब्रेड लूटने गए थे, दरवाजा तोड़ते हुए बिजली का तार भी नंगा हो गया और करेंट लगने से आठ लोग मार्क्स को प्यारे हो गए।
इतने ही लोग मदुरो (समाजवादी राष्ट्रपति) के गुंडो ने मार डाले। जी, मदुरो ने अपनी “पार्टी” के कार्यकर्ताओ को अधिकारिक तौर पर हथियार बाँट दिए है, जैसे की इटली वाली कोंग्रेसीयों को दे देती, या अखिलेश समाजवादी गुंडो को दे देता, या केजरी अपने “volunteers” को दे दे। या जैसे बंगाल व केरल में मार्क्स चाचा के भतीजों के पास होते है।
जो लोग भूख के मारे अनाज लूटने निकलते है उन्हें मदुरो के गुंडे मारते है।
नरसिम्हा राव ने होते तो 1991 में हम लोग भी ऐसे ही एक दूसरे को काट कर खा रहे होते।
समाजवाद में नौकरशाह व राजनेता कल्पना से परे धनवान हो जाते है। उनके लिए चारा भी धन उगलता है व रेत भी। भारत के नेताओं व नौकरशाहों के पास, हरेक के पास, हज़ारों करोड़ की सम्पत्ति है।
इनहि के चमचे उद्योगपति बन जाते है। पत्रकार भी हिस्सा पाने लगते है व राग दरबारी गाना शुरू कर देते है।
जनता सस्ती दाल व सरकारी चपरासी व सिपाही की नौकरी के लालच में सत्ता सौंपती रहती है एक या दूसरे समाजवादी गैंग को।
कौन समझाए जनता को?
नेता नही समझाएगा, नौकरशाह नही समझाएगा, अभिनेता को पता नही और सरकार से पंगा कौन ले, आयकर वालों को भेज देगी। शिक्षित स्वयं समझते है कि सरकार नौकरी दे, सरकार वेतन तय करे निजी क्षेत्र में भी, सरकार निजी स्कूलो की फ़ीस तय करे, निजी अस्पतालों की फ़ीस तय करे, दवाईयो के दाम तय करे।
अरे भाई यही तो समाजवाद है…………..
जैसे आठ दृष्टिहीन व्यक्ति हाथी के शरीर को अलग अलग छूकर हर तरह के निष्कर्ष निकालते है सिवाय इसके कि वे एक हाथी को छू रहे है, वैसे ही भारत (व अन्य देशों) के शिक्षित ये मानने को तैयार नही कि समाजवाद के विभिन्न कार्यक्रमों का जोड़ हमेशा समाजवाद ही होता है और समाजवाद का अंत हमेशा देश के दिवाले में होता है, जैसे 1989 में रूस दिवालिया हुआ, 1991 में भारत हुआ, 2008 में ग्रीस हुआ, और अब वेनेज़ुएला हो गया है। बहुत सारे देश है जो दिवाला निकलने से एकदम पहले थोड़ा सा संभल गए किसी नरसिम्हा राव जैसे नेता की वजह से और जनता समाजवाद की तार्किक पराकाष्ठा नही देख पायी।
लाखों करोड़ों लोग भूखमरी में जी रहे है, बीमारी में मर रहे है, समाजवाद से जो माफ़िया राज उत्पन्न होता है उस हिंसा में मर रहे है, लेकिन शिक्षित भी कुछ सीखने को तैयार नही है, professors भी कभी सच नही बोलते, नौकरशाह जिन्हें पता भी है कि क्या लूट चल रही है और क्या बर्बादी हो रही है वे भी नौकरी जाने के डर से चुप है। या सभी नौकरशाहो की तरह मानते है कि समस्या का समाधान थोड़े और पद व कुछ और योजनाए है, और कौन नेता ये मान सकता है कि सरकार हर समस्या का समाधान नही है?
फ़्रान्स की रानी केक खिलाना चाहती थी भूखों को; समाजवादी उन्हें योजनाए खिलाते है। लेकिन पता नहीं क्यूँ, हर योजना चमत्कारी रूप से केवल नेता, नौकरशाह, उनके चमचे उद्योगपति, पत्रकार, व प्रोफ़ेसर की ही तिजोरी भरती है।
और मानव इतना निकृष्ट जीव है कि अपने career व अपनी सम्प्न्न्ता के लिए करोड़ों लोगों को मौत के मुहँ में धकेल स्कॉच पीने बैठ सकता है।
ये हमने कल भी लिखा था। कल भी लिखेंगे। बदलेगा कूछ नही। हमारे शिक्षित पढ़ाकू मित्र भी रोज़ घंटो बहस कर लेंगे लेकिन अर्थशास्त्र की तीन किताबें नही पढ़ेंगे।
और फिर माँग करेंगे कि बच्चो को सरकारी नौकरी दे सरकार………और उससे भी पहले निजी स्कूल को बच्चो की फ़ीस बढ़ाने से रोके।