By Omendra Ratnu
विश्व हिन्दू परिषद व हिन्दू हैरिटेज फ़ाउन्डेशन के तत्वावधान में पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुओं व सिखों के लिए कार्यरत संस्था ‘ निमित्तेकम् ‘ द्वारा 2-3 फ़रवरी को जयपुर में पहला विस्थापित हिन्दू सम्मेलन आयोजित किया गया ।
विश्व हिन्दू परिषद के प्रशान्त हरतालकर , हिन्दू हैरिटेज फ़ाउन्डेशन के किशोर टाँक व निमित्तेकम् के जय आहूजा ने इस पूरे सम्मेलन का बीड़ा उठाया तथा उसे सार्थक निष्कर्ष पर पहुँचाया ।
इस सम्मेलन के कई उद्देश्यों में से मुख्य था पाक
विस्थापित हिन्दुओं की दुर्दशा को संसार के सामने लाना व उस पर हिन्दू समाज में एक चर्चा की नींव रखना ।
अन्य उद्देश्य :
1) भारतवर्ष में नौ राज्यों में पाक विस्थापित हिन्दुओं के लिए 18 विभिन्न संस्थाएँ कार्य कर रही हैं । उन सबके मध्य विहिप के माध्यम से एक समन्वय स्थापित करना ।
2) पाक विस्थापित हिन्दुओं के विभिन्न विषयों पर सघन मंथन व उनका निराकरण ।
3) केन्द्र व राज्य सरकारों पर पाक विस्थापित हिन्दुओं के विषय पर दबाव बना कर भारत में उनका जीवन सरल बनाना ।
कार्यक्रम का शुभारंभ भाग्यनगर ( हैदराबाद ) से पधारे युवा कर्मयोगी राष्ट्र संत स्वामी परिपूर्णानन्द जी के ओजस्वी संबोधन से हुआ । स्वामी जी ने कहा कि धर्म बचाने के लिए अपना सब कुछ तज कर आने वाले हिन्दू हमारे ही माँ बाप , भाई बहिन व बच्चे हैं । भारत इनकी मातृभूमि है ।
रायपुर , छत्तीसगढ़ से पधारे संत श्री युधिष्ठिर लाल जी ने भी शुभारम्भ में आशीर्वचन कहे ।
प्रशान्त हरतालकर ने कहा कि बिना संगठन के हिन्दू ऊर्जा छिन्न भिन्न हो रही है , समय की माँग है कि सब हिन्दू संगठन मिल कर काम करें जिससे कि कम समय में अधिक परिणाम प्राप्त हो सकें ।
कार्यक्रम में विधायक श्री ज्ञानदेव आहूजा व जयपुर के मेयर श्री अशोक लाहोटी भी उपस्थित रहे ।
सम्मेलन को मुख्यत: सात सत्रों में बाँटा गया था ।
आधारभूत संरचना , स्वास्थ्य , स्वरोज़गार व स्वावलम्बन , सुरक्षा , संस्कार व संवाभिमान , हिन्दू विस्थापित कोष व शिक्षा पर सत्र रखे गए ।
अंतिम सत्र में केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुन मेघवाल भी रहे तथा अपनी मूल्यवान बातों से सभा का मार्गदर्शन किया ।
सम्मेलन की उपलब्धियाँ व आकाँक्षाएं निम्न भाग में वर्णित हैं ।
1) देश भर से बारह संगठनों के लगभग सौ प्रतिनिधियों ने सक्रिय भाग लिया । सब संगठनों ने एक दूसरे से सम्पर्क बनाए रखने व एक दूसरे का संबल बनने का वचन भी दिया ।
2) पाकिस्तान में फँसे हुए हिन्दुओं के लिए वीसा की संख्या बढ़ाने हेतु केन्द्र सरकार से विनती की गई ।
3) आधारभूत संरचना के लिए जोधपुर में एक पाक विस्थापित धर्मशाला बनाने का निर्णय लिया गया जिसके लिए आवश्यक क़दम उठाने का संकल्प भी लिया गया । क्यूँकि सर्वप्रथम पाक विस्थापित हिन्दू भारत में जोधपुर ही आते हैं , यह एक अत्यावश्यक पहल होगी ।
4) स्वास्थ्य के लिए हिन्दू स्वास्थ्य हैल्प लाइन का प्रचार व उसके सम्यक बल पर जोर डाला गया । विस्थापित कैम्पों में नियमित कैम्प के लिए भी निर्णय लिए गए ।
5) स्वावलम्बन के विषय पर विहिप द्वारा दी गई सहायता राशि के माध्यम से कई विस्थापित हिन्दू सहोदरों ने अपना व्यवसाय आरम्भ किया है तथा सबने पैसा लौटा भी दिया है ।
इसी प्रकार निमित्तेकम के साथ ‘ रेज़ ऑफ़ सन ‘ नाम से वस्त्रों के निर्माण व व्यापार पर एक योजना आरम्भ की जा रही है ।
पाक विस्थापित हिन्दुओं की पारम्परिक दक्षता को जगजाहिर करने व उसका सम्यक उपयोग कर व्यवसाय बनाने हेतु भी निर्णय लिए गए ।
6) संस्कार व स्वाभिमान के सत्र में माननीय दुर्गादास जी ने मार्ग सुझाया तथा पाक विस्थापित हिन्दुओं के लिए संघ की ततपरता का विश्वास दिलाया । माननीय नरपत सिंह जी ने भी इस विषय पर विचार रखे ।
7) इसके बाद एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया जो कि पाक विस्थापित हिन्दुओं के पुनर्वास में एक क्रान्तिकारी कदम हो सकता है ।
हर सार्थक प्रयास धन की निर्बाध उपलब्धता पर निर्भर होता है ।
फिर हर प्रयास के लिए प्रायोजक खोजना भी संभव नहीं , इसीलिए एक सरल योजना की रूपरेखा बनाई गई ।
इस लेख के लेखक द्वारा की गई प्रस्तावना में सौ रुपये प्रति माह विश्व का हर हिन्दू अपने विस्थापित बन्धुओं के लिए अर्पित करे । यदि हम विश्व के सौ करोड़ हिन्दुओं में से एक प्रतिशत तक भी यह संदेश पहुँचा देते हैं तो सौ करोड़ रुपये प्रतिमाह एकत्रित किए जा सकते हैं ।
इसके लिए एक ‘ विस्थापित हिन्दू कोष ‘ बनाने की प्रस्तावना प्रशान्त हरतालकर जी द्वारा की गई । यह कोष एक ट्रस्ट संचालित करेगी तथा यह कोष तीन मुख्य बिन्दुओं के लिए होगा :
क ) विस्थापित हिन्दुओं में दक्षता ( Skill ) का विकास तथा स्वयं के उद्योग लगाने हेतु रृण की व्यव्स्था ।
ख) विस्थापित हिन्दुओं के स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर सहायता
ग) विस्थापित हिन्दुओं की शिक्षा संबंधी सहायता ।
इस कोष के लिए प्रशान्त जी के नेतृत्व में शीघ्र ही दिल्ली में एक ट्रस्ट का निर्माण कर क्रियान्वयन किया जाएगा ।
8) शिक्षा के सत्र में केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुन मेघवाल जी ने जोधपुर तथा जयपुर में दो दक्षता विकास ( Skill development ) के कॉलेज खोलने की घोषणा की तथा कई लम्बित विषयों पर पुरज़ोर कार्यवाही का वचन भी दिया ।
इस प्रकार प्रशान्त जी का एकाकी प्रयास एक मेले का रूप लेकर 3 फ़रवरी को साँय समाप्त हुआ ।
बहुत से नए मित्र बने , बहुत वचन दिए गए , बहुत से सुझाव दिए गए , बहुत से विचार साझा हुए तथा यह सम्मेलन पाक विस्थापित हिन्दुओं के लिए एक आशा की किरण बन गया । यह क्रम अब हर वर्ष चलाया जाए , इन्हीं मीठी स्मृतियों के साथ सब बन्धु अपने अपने घरों को लौट गए ।
कार्यक्रम पर विहंगम दृष्टि डालने पर दो बहुत आवश्यक बातों पर पुन: प्रकाश डालना आवश्यक है ।
पहला है जोधपुर में पाक विस्थापित हिन्दुओं के लिए एक नवीन नेतृत्व खड़ा करना । चूँकि जोधपुर में ये विस्थापित सर्वाधिक संख्या में हैं , हमारा सारा प्रयास वहीं इनकी सब विषयों पर सहायता करने का होना चाहिए ।
एक लाख से अधिक पाक विस्थापित हिन्दू यदि भयंकर कष्ट में हैं तो यह हमारे लिए लज्जाजनक बात है ।
दूसरी आवश्यक बात है हिन्दू विस्थापित कोष की स्थापना ।
जिस प्रकार अन्य पंथों में ज़कात व टाइथ आदि नियमित दान की अनिवार्यता है , हिन्दू धर्म में भी होनी चाहिए । प्रत्येक हिन्दू सौ रुपये प्रतिमाह धर्म के हेतु दान करे तो यह एक युग प्रवर्तक कदम हो सकता है ।
हमारे सद्गुरु व रृषियों ने दान की बात जगह जगह लिखी है , अर्थ को धर्म , काम व मोक्ष के ही समान पुरुषार्थ माना गया है । श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज ने अपने जीवन काल में मुग़लों से युद्ध के लिए ‘ दशवन्द ‘ माँगा था । हर हिन्दू को सेना के लिए अपनी आय का दसवाँ हिस्सा देना होता था ।
यदि हम हिन्दू अपने ही गुरुओं की सीख अपने जीवन में नहीं उतारेंगे तो हमारा नाश निश्चित है । आज भी हम युद्ध की स्थिति में हैं , औद्योगिक स्तर पर धर्मान्तरण , क़ानून की सहायता से धर्म पर चोट , हमारे देवी देवताओं का निरंतर अपमान , यह एक प्रकार से सभ्यता का युद्ध ही तो है ।
हमारे सहोदरों को पाकिस्तान व बांग्लादेश से मात्र इसीलिए विस्थापित किया जा रहा है ना कि वे हिन्दू हैं , यह युद्ध नहीं तो और क्या है ?
तो क्या हम हिन्दू इस युद्ध में सौ रुपये प्रतिमाह के ‘ धर्मान्श ‘ की आहुति भी नहीं दे सकते !!!
यह सम्मेलन सच में ही सफल माना जाएगा यदि ‘ धर्मान्श ‘ का बीज हिन्दुओं के चित्त पर पड़ जाए ।
पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दू हमारे रक्त संबंधी हैं । ये वो वीर्यवान हिन्दू हैं , जो अपना घर , पैसा , संपत्ति , स्मृतियाँ , संबंधी , यहाँ तक की अपनी जन्मभूमि भी छोड़ कर भारत आते हैं … केवल एक कारण से … कि उन्हें धर्मान्तरण नहीं करना पड़े ।
विभाजन के समय पाकिस्तान के २२ % हिन्दू अब मात्र २ % रह गए हैं । लगभग एक करोड़ हिन्दू या तो मार डाले गए , धर्म गंवां बैठे या पलायन कर गए ।
यह मानव इतिहास में एक धर्म का सबसे बड़ा नरसंहार है ।
आज भी पचास लाख हिन्दू जेहाद के दावानल से घिरे हुए किसी प्रकार अपने जीवन व सम्मान को बचाने के संघर्ष में रत हैं ।
इक्कीसवीं शताब्दी में भी यदि हम हिन्दू अपने इन भुलाए हुए बन्धुओं की सुध नहीं लेते तो फिर देर सबेर हमारा मिटना भी निश्चित है ।
भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दुओं का ससम्मान जीवन , पाकिस्तान व बांग्लादेश में हिन्दुओं के सुरक्षित विस्थापन पर सीधे सीधे निर्भर करता है ।
यदि यह ‘ हिन्दू विस्थापित सम्मेलन ‘, भारत व विश्व भर के हिन्दुओं के मानस पटल पर इन अभागे हिन्दुओं का दुख अंकित कर पाया , तो यह सम्मेलन पूर्णतया सफल रहा ।
बॉलीवुड व क्रिकेट से चुँधियाई हुई हिन्दू चेतना पर यदि पाकिस्तान में फँसे हमारे सहोदरों के प्रति करुणा के बीज का आरोपण हुआ तो यह सम्मेलन बहुत कुछ कर गया ।
यदि हमारे जीवन की लघुता व पाकिस्तान में फँसे हिन्दुओं की विशाल हृदयता की हमें एक झलक भी मिली , तो यह सम्मेलन अपने लक्ष्य में सफल हुआ ।
अपने साधारण जीवन की आपाधापी में दौड़ते हुए , अस्तित्व कभी कभी हमें यह अवसर देता है कि हम हाथ बढ़ा कर अपने पीछे छूटे हुए सहोदरों के लिए कुछ कर सकें ।
अपने निरर्थक जीवन में सार्थकता भरने का अवसर किसी भाग्यशाली को ही मिलता है ।
पाक विस्थापित हिन्दुओं की सेवा ऐसा ही एक अवसर है , जो हमारे जीवन को प्रेम व दान के रंगों से भर सकता है ।
जो भाग्यशाली हैं , वे इस अवसर का उपयोग कर अपने इहलोक व परलोक दोनों को सँवार लेंगे ।
हरि ॐ तत्सत
The author is a famous ENT surgeon.-Ed
(To visit the website of Nimittekam, the NGO working for the Displaced Hindus, click here.-Ed)