वेनेजुएला में महँगाई दर 10,00,000% प्रतिवर्ष हो गयी है।याने वस्तुओं के दाम हर अठारह दिन में दुगने हो जाते है।
भारत में पिछली सरकार में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जब नोट छापकर चहेतो में लोन बाँट रहे थे तो पहंगाई दर चौदह प्रतिशत तो पहुँच ही गयी थी।
वामपंथी infantile सोचते है कि नोट छापकर बाँटेगे तो लोग अमीर हो जाएँगे। नोट धन नहीं होते। धन तो जो हम वस्तुये पैदा करते है, बनाते है, अन्य कार्य करते है वह होता है। नोट तो बस धन को exchange करने का माध्यम भर होते है। अगर सरकार नोट छापती है तो सब के पास बस नोट रह जाते है, क्यूँकि सरकार से मुफ़्त के नोट मिल रहे होते है तो कोई काम तो करता नहीं। सब नोट लिए घूम रहे होते है, ख़रीदने को कुछ होता नहीं।
एक साल बाद चुनाव है भारत में। “मुफ़्त में ये देंगे, वो देंगे, वो भी देंगे……” के वायदे करेंगे वामपंथी याने समाजवादी। Infantiles उन्हें वोट भी देंगे। (बुरा न माने, केवल बच्चे विश्वास करते है कि जादू की छड़ी होती है, जिससे बिना कुछ किए सब मिल जाता है, व बच्चों जैसे विश्वास करने वालों को infantile ही कहते है अंग्रेज़ी में।), लेकिन मुफ़्तखोरी आरम्भ होगी तो पाँचेक साल में भारत भी वेनेज़ुएला बन जाएगा।
वेनेज़ुएला के सारे नेताओ व नौकर शाहो के बच्चे अमरीका में है, सबके बंगले है अमरीका में। वेनेज़ुएला ध्वस्त होगा तो सारे अमरीका भाग जाएँगे।
भारत के सारे समाजवादी भी देश समाप्त होगा तो यूरोप भाग जाएँगे। रह जाएँगे तो केवल मुफ़्तखोर, नोट निगलते हुए।
वेनेज़ुएला में बच्चों की मरणदर दो सौ साल पहले जितनी हो गयी है। यानी मुफ़्तख़ोर वोटर शिशुभक्षि होते है वास्तव में-अपने ही बच्चों का भविष्य ही नहीं, बच्चों को ही खाने वाले। भारत के भी समाजवादी शासन वाले राज्यों के बच्चे हताशा में दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे है, लेकिन माँ बाप फिर भी अपनी जाति के समाजवादी को ही वोट देने पर अड़े है।
वेनेज़ुएला के पास दुनिया का सबसे बड़ा तेल का भंडार भी है। तब ये हालत है। हिमालय भी अगर सोने का हो और समाजवादियों के हाथ लग जाए तो उसे भी कुड़ा बना दे ये लोग।
(भारत के समाजवादी कुछेक साल पहले वेनेज़ुएला की प्रशंशा किया करते थे। कि देखो समाजवाद क्या कमाल का सिस्टम है। अब कही छुप गए है। आपको मिलेंगे और आप पूछेंगे तो बोलेंगे कि “सही से लागू नहीं हुआ।”)
समाजवादी सत्ता में आते है व धनी लोगों को लूटकर बाँटना आरम्भ करते है तो कुछ दिन तो अच्छा लगता ही है सबको। संकट तब आरम्भ होता है जब लूट का माल समाप्त हो जाता है व मुफ़्तखोर आकर नेताओं का गला पकड़ते है।