मकान, सड़क, कुँए, थाना, न्यायालय- ये सब Capital assets होते है। मतलब ये स्वयं कुछ नहीं पैदा करते लेकिन इनके होने से अन्य आर्थिक गतिविधियाँ सम्भव होती है, जैसे जिनके पास मकान होते है वे लोग अधिक उत्पादक होते है। जो गाँव सड़क से किसी नगर से जुड़ा हो वह अधिक सम्पन्न होता है।पुलिस व न्यायालय हो तो लोग सुरक्षित महसूस करते है इसलिए उत्पादन व संगृह करते है। सोना इनके बाद आता है। जिसके पास सोना है वह अन्य व्यक्तियों से उनके उत्पाद ख़रीद सकता है, व अंतत करेन्सी आती है, जिसके पास है वह अन्य व्यक्तियों से उनके उत्पाद ख़रीद सकता है। यह क्रम क्यूँ लिखा है अभी स्पष्ट हो जाएगा।
अंडमान में एक जनजाति है, tribe, जिससे अभी भी सम्पर्क नहीं हो पाया है। उन लोगों के पास न कोई मकान है, न सड़क, न सोना, न करेन्सी। कोई उन्हें करेन्सी दे तो फेंक देंगे, कोई उपयोग नहीं है, सोना दे तो फेंक देंगे, या कोई एकाध हो सकता है अचंबे में कुछ देर रख ले, कोई उन्हें मकान बेचना चाहे तो नहीं बेच पाएगा क्यूँकि उनके पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है, मतलब आपके मकान का मूल्य उनकी दुनिया में शून्य है।
मतलब आपके मकान का मूल्य उनकी दुनिया में शून्य है।
ऊपर वाला वाक्य ग़लती से दो बार नहीं लिखा। इसलिए दोहराया कि जिसने यह वाक्य समझ लिया उसने अर्थशास्त्र में PhD प्राप्त कर ली।
मतलब आपके नोटो, आपके सोने, आपके मकान का मूल्य तभी है जब अन्य लोगों के पास धन है। धन कैसे आता है? धन काम से आता है। जिसके पास रुपए है उसने कोई काम किया है या कोई वस्तु बनाकर बेची है या उन लोगों से चुराया/छीना है जिन्होंने कोई काम कर/वस्तु बेचकर रुपया कमाया था। मतलब आपके मकान, सोने व रुपए का मूल्य अन्य लोगों द्वारा किया गया काम तय करता है। जितना अन्य लोग काम करेंगे आपके मकान, सोने, व करेन्सी का मूल्य उतना ही बढ़ जाएगा।
मतलब अन्य लोग अगर काम बंद कर दे कल सुबह से तो आपके सारे assets का मूल्य शून्य हो जाएगा।
लोग काम क्यूँ करते है? क्यूँकि वे अपने जीवन को अंडमान की उस tribe से अच्छा बनाना चाहते है। क्यूँकि उन्हें अच्छा जीवन क्या होता है व कैसे सम्भव है उसका ज्ञान है। क्यूँकि वे forager, gatherer, hunter से अच्छा जीवन जीना चाहते है। क्यूँकि बहुत सारे लोग ऐसा चाहते है तभी आपके लिए भी ऐसा कर पाना सम्भव है। अंडमान जाए आपकी हॉर्वर्ड की MBA डिग्री काग़ज़ से भी निम्न कूडा हो जाएगी।
कोई भी व्यक्ति न अपने जीवन जीने लायक सारे काम करता है, ना ही अपने लिए आवश्यक सारी वस्तुयें पैदा कर सकता है। वह कुछ ही काम करता है, उन्मे से कुछ को किसी अन्य को बेचकर रुपए लेता है व उन रुपयों से अन्य व्यक्तियों के काम/वस्तुयें ख़रीदता है।
आधुनिक समाज इसलिए सम्भव है क्यूँकि अधिकतर लोग अन्य व्यक्तियों से उनके काम/उत्पाद छीनते नहीं बल्कि अपना काम/वस्तुयें देकर लेते है। मतलब लोग इतने बुद्धिमान होते है कि काम कर सके या कुछ पैदा कर सके व इतने नैतिक होते है कि अन्य से उनका काम/वस्तु छीने नहीं।
कौन क्या काम करेगा किसी को नहीं पता, कोई क्या वस्तु पैदा करेगा कोई नहीं तय कर सकता। किसी के काम का क्या मूल्य होगा कोई नहीं बता सकता। किसी की पैदा की गयी वस्तु का क्या मूल्य होगा कोई नहीं बता सकता। किसी के भी काम व वस्तु का वही मूल्य है जो अन्य लोग देने को तैयार है। हर किसी को वह काम करना पड़ेगा जिसके किए कोई मूल्य देने को तैयार है, वह वस्तु पैदा करनी पड़ेगी जिसे कोई अन्य ख़रीदने को तैयार है। किसी भी नैतिक समाज में यही व्यवस्था होगी, जहाँ बल प्रयोग से काम कराए जाय, वस्तुओ के भाव तय किए जाय वह समाज नैतिक नहीं है व नष्ट हो जाता है।
अगर लोग इतने बुद्धिमान व नैतिक न हो तो कोई काम नहीं करेगा, व जैसा ऊपर समझाया है आपके हर asset का मूल्य शून्य हो जाएगा- मकान व सड़क का भी।
मतलब किसी भी राष्ट्र/समाज की wealth उसके नागरिकों की बुद्धिमानी व नैतिकता होती है बाक़ी कुछ भी नहीं।
जिस देश के नागरिक अनुपातिक (relatively) रूप से जितने बुद्धिमान व नैतिक होते है वह उतना ही सम्पन्न होता है, व जिस देश के नागरिक जितने मूर्ख व भ्रष्ट होते है वह देश उतना ही ग़रीब होता है। और कोई कारण नहीं है- न नेता, न आर्थिक नीति, न प्राकृतिक सम्पदा, कुछ नहीं है। नेता व आर्थिक नीतिया देश के लोगों की बुद्धिमानी व नैतिकता का, या मूर्खता व भ्रष्टाचार का मूर्त रूप व परिणाम भर होते है।
So, the only wealth a nation has and can have is the wisdom and honesty of its citizens. Nothing less, nothing more.